Sunday, 19 February 2017

कविता

*गुरु थे, कर्मचारी हो गए हैं ।*
*दांतों फंसी सुपारी हो गए हैं ।।*
*महकमा सारा हमको ढूँढता है।*
*हम संक्रामक बीमारी हो गए हैं ।।*
*इसे चमचागिरी की हद ही कहिये।*
*कई शिक्षक अधिकारी हो गए हैं ।।*
*अब वे अकेले कईयों को नचाते हैं ।*
*और हम टीचर से मदारी हो गए हैं ।।*
*उन्हें अब चाक डस्टर से क्या मतलब ।*
*जो ब्लॉक/संकुल प्रभारी हो गए हैं ।।*
*कमीशन इसमें,उसमें, इसमें भी दो।*
*हम दे-दे कर भिखारी हो गए हैं ॥*
*मिला है MDM का चार्ज जबसे ।*
*गुरुजी भी भंडारी हो गए हैं ॥*
*बी ई ओ ऑफिस को मंदिर समझ कर ।*
*कई टीचर पुजारी हो गए हैं ॥*
*पढ़ाने से जिन्हें मतलब नहीं है ।*
*वो प्रशिक्षण प्रभारी हो गए हैं ॥*
*खटारा बस बनी शिक्षा व्यवस्था ।*
*और हम लटकी सवारी हो गए हैं ।।* 
*स्कूलों में पढ़ाने नहीं दे रही सरकार ।* *केवल डाक देने वाले डाकिया हो गये ।।*
*हक की लड़ाई लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है ।* 
*शिक्षक अब गुरु नहीं रहे केवल सरकारी गुलाम रह गए ।।*
*अब विभाग ई-अटेंडेंस से हमारी निगरानी करेगा ।* 
*मानो हम "शिक्षक" नहीं, "मोस्ट वांटेड अपराधी" हो गए ।।*


                                                              By:- sharfe

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